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क्व १॒॑ स्य ते॑ रुद्र मृळ॒याकु॒र्हस्तो॒ यो अस्ति॑ भेष॒जो जला॑षः। अ॒प॒भ॒र्ता रप॑सो॒ दैव्य॑स्या॒भी नु मा॑ वृषभ चक्षमीथाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kva sya te rudra mṛḻayākur hasto yo asti bheṣajo jalāṣaḥ | apabhartā rapaso daivyasyābhī nu mā vṛṣabha cakṣamīthāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्व॑। स्यः। ते॒। रु॒द्र॒। मृ॒ळ॒याकुः॑। हस्तः॑। यः। अस्ति॑। भे॒ष॒जः। जला॑षः। अ॒प॒ऽभ॒र्ता। रप॑सः। दैव्य॑स्य। अ॒भि। नु। मा॒। वृ॒ष॒भ॒। च॒क्ष॒मी॒थाः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:33» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वैद्यक विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषभ) श्रेष्ठ (रुद्र) दुःखनिवारक वैद्य आप (दैव्यस्य) जो देवों के साथ वर्त्तमान उसके बीच (मा) मुझे (अभि,चक्षमीथाः) सब ओर से सहन कीजिये (यः) जो (ते) आपको (मृळयाकुः) सुख देनेवाला (हस्तः) हर्षयुक्त (भेषजः) वैद्यजन (जलाषः) सुखकर्त्ता और (रपसः) पापों का (अपभर्त्ता) अपभर्त्ता अर्थात् दूरकर्त्ता (अस्ति) है (स्यः) वह (क्व) कहाँ है? ॥७॥
भावार्थभाषाः - जब अध्यापक वैद्य शिष्यों को पढ़ावे तब अच्छे प्रकार पढ़ाकर फिर परीक्षा करे, जो यथार्थ प्रश्नोत्तर करनेवाला हो, उसको वैद्यकी करने को आज्ञा देओ ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्वैद्यकविषयमाह।

अन्वय:

हे वृषभ रुद्र त्वं दैव्यस्य मध्ये माभिचक्षमीथाः। यस्ते मृळयाकुर्हस्तो भेषजो जलाषो रपसोऽपभर्त्ताऽस्ति स्यः क्वास्ति ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्व) कुत्र (स्यः) सः (ते) तव (रुद्र) दुःखनिवारक (मृळयाकुः) सुखयिता (हस्तः) यो हसति सः (यः) (अस्ति) (भेषजः) भिषग् जनः (जलाषः) सुखकर्त्ता (अपभर्त्ता) अपबिभर्त्ति दूरीकरोतीति (रपसः) पापानि (दैव्यस्य) यो देवैः सह वर्त्तते तस्य (अभि) आभिमुख्ये (नु) सद्यः (मा) माम् (वृषभ) श्रेष्ठ (चक्षमीथाः) सहस्व ॥७॥
भावार्थभाषाः - यदाऽध्यापको वैद्यः शिष्यानध्यापयेत्तदा सम्यगध्याप्य पुनः परीक्षयेत्। यो याथातथ्येन प्रश्नोत्तराणि कर्त्ता स्यात्तं वैद्यककार्य्ये नियुञ्जीध्वम् ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा अध्यापक वैद्य शिष्यांना शिकवितात तेव्हा चांगल्या प्रकारे शिकवून नंतर परीक्षा घ्यावी. जो यथार्थ प्रश्नोत्तर करणारा असेल त्याला वैद्यकी करण्याची आज्ञा द्यावी. ॥ ७ ॥